भारतीय संस्कृति परस्पर सहमति से बनती है

मौलाना वहीदुद्दीन खान  I नवभारत टाइम्स | Jul 24, 2013

मौलाना वहीदुद्दीन खान  अपनी पैदाइश से अब तक की मेरी पूरी जिंदगी भारत में ही बीती हैं और मैं खुद को इस संस्कृति का हिस्सा मानता हूं। भारत की मोहब्बत मेरे दिल में उसी तरह रची-बसी है, जिस तरह अपनी मां के लिए है।

मैं समझता हूं कि भारतीय संस्कृति के दो पहलू हैं। एक पहलू है आध्यात्मिकता और दूसरा पहलू है शांति। आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति का भीतरी पहलू है और शांति बाहरी- स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिकता के प्रतीक हैं और महात्मा गांधी शांति के।

मैं उत्तर प्रदेश के एक गांव में पैदा हुआ। वह ब्रिटिश सरकार का दौर था। मेरा परिवार जमींदार परिवार था। पैदा हुआ तो देखा कि जमींदारी का सारा काम हिंदू लोग संभालते थे... भाऊ राम, राम लगन, बुझारत, खदेरू, सुरदिन...। उस माहौल में मेरे अंदर कभी यह बात आई ही नहीं कि हिंदू अलग हैं और मुसलमान अलग। इसलिए भारत के बंटवारे की बात मेरा दिमाग आज तक मंजूर नहीं कर सका। मुझे याद है कि जब दीवाली आती थी तो हम अपने घर में रोशनी करने के लिए दिए जलाते थे। दशहरा आता तो गांव के दूसरे लड़कों के साथ मेला देखने जाते थे। मुझे ऐसा लगता है कि दशहरा- दीवाली हिंदुओं के नहीं, बल्कि भारत के कौमी त्योहार हैं।

मेरी प्राइमरी शिक्षा एक मदरसे में हुई। वहां मैंने जो किताबें पढ़ीं, उनमें एक ऊर्दू रीडर भी थी। उसमें एक कविता थी, जिसका शीर्षक था 'गाय।' इस कविता की पहली लाइन थी- रब की हम- दो-सना कर भाई, जिसने ऐसी गाय बनाई। इस कविता की पहली लाइन मेरे लिए भारतीय संस्कृति का पहला परिचय थी। कविता की एक लाइन थी- कल जो घास चरी थी वन में, दूध बनी वह गाय के थन में। इसी से मैंने जाना कि गाय को भारत के लोगों ने इसलिए मुकद्दस माना, क्योंकि वह भारतीय संस्कृति की प्रतिनिधि है। गाय को दूसरे लोग घास देते हैं, लेकिन वह उन्हें दूध देती है। यानी गाय में ऐसी ताकत है कि वह नॉन मिल्क को मिल्क में बदल देती है। इसका मतलब यह है कि इन्सान को दुनिया में इस तरह रहना चाहिए कि दूसरे लोग भले उसके साथ बुरा सलूक करें, पर वह उनके साथ अच्छा सलूक करे। वह नकारात्मक अनुभव को सकारात्मक अनुभव में बदल दे।

स्वामी विवेकानंद की जिंदगी का एक वाक़या इस चीज की अच्छी मिसाल पेश करता है। एक बार उनके एक दोस्त ने उन्हें अपने घर बुलाया। जिस कमरे में वे लोग बैठे, उसमें एक मेज पर तमाम मजहबों की पाक किताबें रखी थीं। किताबें एक के ऊपर एक रखी थीं, और सबसे नीचे गीता रखी थी- हिंदू मजहब की मुकद्दस किताब। स्वामी जी उसे गौर से देख रहे थे। गीता पर उनकी नजर देख कर मेजबान ने नम्रता से पूछा, क्या गीता को सबसे नीचे देख कर उन्हें बुरा लगा है? स्वामी जी मुस्कुराए और बोले, नो, आय सी दैट द फाउंडेशन इज रियली गुड (बिलकुल नहीं, मैं तो देख रहा हूं कि नींव बहुत अच्छी है)। इस तरह स्वामी जी ने एक नकारात्मक नजरिए को सकारात्मक प्रसंग में बदल दिया।

भारतीय संस्कृति का एक बहुत बड़ा संदेश है- शांति, जिसे गांधी जी ने अपनाया। आज सारी दुनिया को शांति की जरूरत है और महात्मा गांधी ने व्यावहारिक तौर पर दिखाया कि शांति में कितनी ताकत है। वे 1920 में भारतीय राजनीति में उतरे। उनसे पहले का आजादी के आंदोलन का दौर हिंसक था। लेकिन गांधी ने कांग्रेस का नेतृत्व संभालते हुए यह साफ कर दिया कि यह आंदोलन अहिंसा के ही आधार पर चलाया जाएगा। यह उस दौर की ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत कठिन साबित हुआ। वह हिंसा का जवाब हिंसा से तो दे सकती थी, लेकिन अहिंसक आंदोलन को कैसे थामा जाए, इसे वह समझ नहीं पाई। कहा जाता है कि उस जमाने में एक ब्रिटिश कलेक्टर ने इस हालत से परेशान होकर अपनी सरकार को एक टेलीग्राम भेजा, जिसमें लिखा था- काइंडली वायर इंस्ट्रक्शंस हाउ टु किल अ टाइगर नॉन वायलेंटली। (कृपया बजरिए तार बताइए कि किसी बाघ को बिना हिंसा के कैसे मारा जाए)।

भारत की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यहां की संस्कृति परस्पर सहमति पर कायम है। यानी अपने को सच्चा मानते हुए दूसरों की सचाई की भी इज्जत करना। यही वजह है कि भारत में हर मजहब के लोगों को तरक्की करने का मौका मिला। मेरा अपना मानना है कि आज की दुनिया में 47 मुसलिम देश हैं, लेकिन भारत मुसलमानों के लिए सबसे अच्छा देश है। किसी भी कौम की तरक्की के लिए दो चीजों की जरूरत होती है- शांति और आजादी। ये दोनों चीजें एक साथ आज किसी भी मुसलिम मुल्क में मौजूद नहीं हैं, जबकि भारत में हैं। मुसलमानों के लिए तरक्की का जो मौका यहां मौजूद है वह किसी और देश में नहीं।

स्वामी विवेकानंद 1893 में अमेरिका गए। वहां उन्होंने शिकागो में वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ रिलिजन में अपनी तकरीर में कहा था, हमारा यह मानना है कि सभी धर्म सच्चे हैं। स्वामी जी के भाषण पर जितनी तालियां बजी थीं, किसी और के भाषण पर नहीं बजी थीं। एक दिन स्वामी जी शिकागो की सड़क पर घूम रहे थे। उनके बदन पर बिना सिले हुए दो कपड़े थे। उसी सड़क पर एक यूरोपीयन जोड़ा भी टहल रहा था। पत्नी ने पति से कहा कि यह आदमी मुझे जेंटलमैन नहीं लगता। स्वामी जी ने उसकी बात सुन ली। वे उनके पास गए और बोले, एक्सक्यूज मी मैडम, इन योर कंट्री टेलर मेक्स अ मैन जेंटलमैन। बट द कंट्री फ्रॉम वेयर आई कम, कैरेक्टर मेक्स द मैन जेंटलमैन (माफ कीजिए मोहतरमा, आपके देश में दर्जी किसी व्यक्ति को जेंटलमैन बनाता है, लेकिन जिस देश का मैं रहने वाला हूं, वहां लोग अपने चरित्र से जेंटलमैन समझे जाते हैं)। मैं समझता हूं कि यह भारतीय संस्कृति की बेहतरीन तर्जुमानी है।