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निराशा नहीं

मौलाना वहीदुद्दीन खान | सोलवेदा | 4 नवंबर 2022

लिंकन के जीवन को एक व्यक्ति ने कुछ शब्दों में इस प्रकार बयान किया है ;

एक व्यक्ति 1831 में व्यापार में असफल हो गया।

उसने 1832 में राजनीति में हार खाई।

1834 में दोबारा उसको व्यापार में असफलता मिली।

1841 में उस पर स्नायु तंत्र का दौरा पड़ा।

1843 में वे चुनाव में खड़े हुए मगर हार गए।

1858 के चुनाव में उनको दोबारा हार मिली।

भूलना एक सकारात्मक अमल

मौलाना वहीदुद्दीन खान | सोलवेदा | 9 नवंबर 2022

नुकसान का यह अनुभव एक कड़वी याद बनकर उसके ज़हन में बैठ जाता है। यह एक ऐसी समस्या है, जो हर स्त्री और हर पुरुष के साथ सामान्य रूप से पेश आती है। इस समस्या का हल क्या है। एक उर्दू शायर ने कहा:

यादे माज़ी अज़ाब है या रब

छीन ले मुझ से हाफ़ज़ा मेरा

प्रतिकूल परिस्थितियां

मौलाना वहीदुद्दीन खान | सोलवेदा | 15 नवंबर 2022

यही कारण है कि जानवरों को पालने के लिए जो बड़े-बड़े पार्क बनते हैं, उनमें कृत्रिम रूप से उनके लिए खतरे का आयोजन किया जाता है। जैसे खरगोश के पार्क में बिल्ली डाल दी जाती है या हिरण के पार्क में एक शेर या भेड़िया डाल दिया जाता है। इस प्रकार जानवरों की चौकसी (Alertness) बाकी रहती है। वह अपनी सुरक्षा की खातिर हर समय जीवित व सचेत रहते हैं। यदि ऐसा न हो, तो धीरे-धीरे वह बुझकर रह जाएंगे।

भटकाव से बचिए

मौलाना वहीदुद्दीन खान | सोलवेदा | 19 नवंबर 2022

यह मानवीय मानसिकता की एक विशेषता है कि इंसान एक ही समय में दो चीज़ों पर समान रूप से ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता। वह एक चीज़ पर ध्यान केंद्रित करेगा, तो दूसरी चीज़ से उसका ध्यान हट जाएगा। यही सिद्धांत तज़्किये के लिए भी सही है। जो इंसान अपना तज़्किया करना चाहता हो, उसको हर हाल में यह भी करना होगा कि वह तज़्किये से संबंधित हर बेकार (irrelevant) चीज़ को पूर्ण रूप से छोड़ दे।